कभी धुप है
कभी छाओं है
कभी उजाला है
कभी घोर अँधेरा
खुशियां और दुःख जैसे
कहीं ठहराओ है
कहीं भागदौड़ है
कहीं नदियां है
कहीं पहाड़ है
उतर चढाव से भरी
कई आस्तिक दीखते है
कई नास्तिक दीखते है
कई इमारतें दिखती है
रस्मो रिवाज से भरी
इंद्रधनुष जैसी रंगीली
हर पल रंग बदलती
कुछ रंग आवारगी के
कुछ रंग कश्मकश के
इस चाहतो के दौर मैं
इक अनबूझ पहेली सी
थोड़ी सी सुलझी हुई
थोड़ी सी उलझी हुई
कुछ खट्टी
कुछ मीठी
कुछ तीखी
कुछ फीकी
वाह रे ज़िंदगी
- विकास गोयल
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