February 23, 2024

वाह रे ज़िंदगी

कभी धुप है 
कभी छाओं है 
कभी उजाला है 
कभी घोर अँधेरा 
खुशियां और दुःख जैसे 

कहीं ठहराओ है 
कहीं भागदौड़ है 
कहीं नदियां है 
कहीं पहाड़ है 
उतर चढाव से भरी 

कई आस्तिक दीखते है 
कई नास्तिक दीखते है 
कई इमारतें दिखती है 
रस्मो रिवाज से भरी 

इंद्रधनुष जैसी रंगीली 
हर पल रंग बदलती 
कुछ रंग आवारगी के 
कुछ रंग कश्मकश के 

इस चाहतो के दौर मैं 
इक अनबूझ पहेली सी 
थोड़ी सी  सुलझी हुई 
थोड़ी सी उलझी हुई 

कुछ खट्टी 
कुछ मीठी 
कुछ तीखी 
कुछ फीकी 
वाह रे ज़िंदगी 

- विकास गोयल 

No comments:

Post a Comment