February 19, 2024

जंग - 1

ज़िंदादिल हु मैं
हौसले बुलंद है अभी भी
जज़्बा ज़िंदगी जीने का है

थोड़ी से थकावट है, थोड़ा सा सुकूँ है
दूर मंज़िल पाने की चाह मैं
चल सकता हु मगर वजह नहीं है
दिल और दिमाग की जंग जारी है

ये फासले  और ये रिश्ते
ये अजीब से दूरियां
वो याद करना, परवाह करना
पर अपनापन कहीं खो गया

थोड़ा सा अकेला हु मैं इस भीड़ मैं 
अकेला ही चला था, अकेला ही हु मैं 
रिश्तों मैं ज़िम्मेदारी के बोझ से 
अपनापन कही खो गया है 

उम्र और तजुर्बे के इजाफे से अक्सर
खामोशियाँ ही मेरा जवाब देती है
अब तो कुछ कहना भी
फ़िज़ूल खर्च लगता है

अक्सर खामोश बैठे बैठे 
अपने आप को सोचता हु मैं 
फुर्सत नहीं कुछ और की 
दिल और दिमाग की जंग जारी है

विकास गोयल 

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